ऐसिड फ्लोरिकम | फ्लोरिक ऐसिड | Acidum Fluoricum 30, 200, 1M &10m Uses in Hindi

ऐसिड फ्लोरिकम (परिचय)

[एक तरहके पत्थरका चूरा, गन्धक के तेजाब में मिलाकर, किसी रासायनिक प्रक्रिया द्वारा यह औषधि तैयार होती है]  

हड्डी का जखम, विशेषकर हियुमर ( दीर्घभुजास्थि) फिमर ( जंघासा), अलना (अंतःप्रकोष्ठास्थि) टिबिया (अनुजंघास्थि) अर्थात् हाथ पैर की सभी लम्बी हड्डियों और टेम्पोरैल कपालास्थि ) हड्डी का जखम और उससे क्षय करनेवाला पतला रस निकलता हो, तो इससे बहुत उपकार होता है। इसके अलावा-मसूढे की सूजन और आँख के नासूर की भी यही प्रायः एकमात्र दवा है। फ्लोरिक ऐसिड के जखम की तकलीफ ठण्डे प्रयोग से घटती है ( साइलिसियामें – ठण्ड से तकलीफ बढ़ती है), उपदंशसे उत्पन्न हुए प्रायः सब तरहके अस्थिक्षत में यह लाभदायक है। इसका रोगी कम उमर में ही वृद्धोंकी तरह दिखाई देता है। रोगी अक्लान्त भाव से परिश्रम कर सकता है, गर्मी या सदर्दी से घबड़ा नहीं जाता। मोतियाबिन्दमें – थियोसिनामिनम व कैल-फ्लोरका व्यवहार कर देखें ।


दाँत की बीमारी- 

दाँतों की जड़ या मसूढ़े में पहले फोड़ा होकर उसमें क्रमश: फिश्चुला ( नासूर ) हो जाने और आराम न होनेपर – क्रमशः दाँतों की जड़ की हड्डी तक रोग जा पहुँचता है ( कैरीज ), पीब में बहुत बदबू रहती है और मुँह से सड़ी गन्ध निकलती है। इस रोगमें धीरजके साथ कम-से-कम २-३ महीनेतक दवा सेवन करना आवश्यक है ( हेक्ला-लावा) ।


द्रष्टव्य – हड्डी या दाँतों के जखममें साइलिसिया का प्रयोग कर बहुत कुछ फायदा हुआ है; परन्तु बीमारी जहाँ एकदम आराम न होती हो, वहाँ साइलिसिया के बाद – ऐसिड फ्लोरिक के प्रयोग से लाभ होगा । पुराना जखम का चिह्न फिर लाल हो जाता है, पकता है और घाव हो जाता है।


अंगुलबेढ़ा ( whitlow ) – 

नश्तर लगने के बाद जखम, उसमें ठण्डा पानी लगनेपर तकलीफ घट जाती हो, तो ― इससे लाभ होनेकी सम्भावना है (डायस्कोरिया / थेराप्यूटिक्स) । 


शिरा का फूलना – 

हैमामेलिस की तरह इससे भी शिरास्फीति रोग आरोग्य होता है। हैमामेलिस बाहरी और भीतरी दोनों प्रकार के प्रयोग में आता है। यदि शिरास्फीति नयी हो, तो-हैमामेलिस और पुरानी होने पर ऐसिड फ्लोरिक लाभदायक है। 


दर्द – 

दाहिनी स्कन्ध सन्धि में दर्द, तर्जनी या समूची अंगुलियों के दर्द और दर्द ऊपर से अंगुली तक फैलना, बायीं प्रदाह में – ऐसिड फ्लोरिक फायदा करता है। समूचे हाथ का फूलना, फूली जगह पहले बहुत गरम हो जाना और उसमें तकलीफ रहना तथा उसके बाद पक जाना – इसमें भी – फ्लोरिक-ऐसिड लाभदायक है ।


पेशाब – 

पेशाब करनेके समय और पेशाब करनेके बाद मूत्रनलीमें आग जल जाने की तरह जलन ( ऐसी जलन केन्थरिसमें भी पायी जाती है) ; पेशाबके समय नहीं, बल्कि, अन्य समयकी जलनमें- स्टैफिसेप्रिया ।


चर्म रोग – 

किसी चर्मरोग में यदि बेतरह खुजलाहट रहे, तो— फ्लोरिक ऐसिड फायदा करेगा। मेजेरियम – इसकी उच्चशक्ति से बहुधा खुजली, तर खुजली, अकौता इत्यादिकी बेतरह खुजलाहट आराम हो जाती है। फ्लोरिक ऐसिड में– शरीरके भिन्न-भिन्न अंशों में और थोड़ी-सी जगह में उद्भेद निकलते हैं, रोगीकी त्वचा सूखी और रुखड़ी रहती है।


पाकस्थली के रोग- 

अजीर्ण-रोगसे पेट फूलना, पेट में दर्द और यन्त्रणा | रोगीको प्यास बहुत अधिक लगती है, केवल ठण्डा पानी पीना चाहता है, खाने-पीने की थोड़ी भी गड़बड़ी से तबियत खराब हो जाती है; पित्त की कै होती है, हमेशा डकार आया करती है और बधो वायु निकलती है, इन शिकायतों में इससे रोगीको आराम मिलता है। –


ऊपर लिखी बीमारियोंके अलावा – साईनोबाइटिस ( घुटनेकी सन्धि का प्रदाह ), उदरी (खास कर शराबियों को), यकृत बड़ा और कड़ा हो जाना, हाइड्रोथोरैक्स ( छाती में पानी इकट्ठा होना ), नाक की पुरानी सर्दी, गलगण्ड ( घेघा ), गले के भीतर उपदंश का जखम, नाक के भीतर सड़े घाव (ozoena : पीनस ), कानमें पीब, सर के केश झड़ जाना, खल्वाट पड़ जाना, लहसन ( nevi ), जखम आराम होकर फिर लाल हो जाना और खुजलाना इत्यादि बीमारियों में भी फ्लोरिक ऐसिड लाभदायक है।


सदृश – 

कोका, साइलिसिया ।


सम्बन्ध – 

फ्लोरिक ऐसिड, दाँत के दर्द में—कॉफिया और स्टैफिसेग्रिया के बाद ; हिपज्वायण्ट ( उरुसन्धि ) की बीमारी में कैलि-कार्ब के बाद ; शराबियों के शोथ और उदरी रोग में – आर्सेनिक के बाद; बहुमूत्र रोग में – ऐसिड फॉस के बाद ; ग्रन्थि रोग में— साइलिसिया और सिम्फाइंटम के बाद और कण्ठमाला में – स्पंजिया के बाद व्यवहार करना चाहिये ।


विष क्रिया-नाशक – 

साइलिसिया । 


क्रिया का स्थितिकाल – 

३० दिन । 


क्रम – 

६, २००, १०००, १०००० शक्ति ।

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