एसिडम ऑक्जेलिकम के फायदे | Homeopathy – Acidum Oxalicum Uses in Hindi

 ऐसिड ऑक्जेलिकम ( Acid Oxalicum )

[ रेवंद-चीनी वगैरहसे उत्पन्न एक विषाक्त तेजाब ] – सन् १८४४ ईस्वी में डॉ० चार्लस न्यूहार्डने इसकी परीक्षा की और उससे इसमें पाकस्थली और आँतोंका प्रबल प्रदाह, साथ ही नाड़ीकी चाल अनियमित, बेहोशी, शीत आना, अकड़न आदि कितने ही लक्षण उत्पन्न हुए। इससे स्पाइनल कॉर्ड ( मेरुदण्ड ) का प्रदाह पैदा होता है और मोटर-सेण्टर (गतिकेन्द्र) का पक्षाघात होता है। गला, छाती और श्वासनली के आक्षेपकी वजहसे श्वासकष्ट होता है, गला फँस जाता है और स्वर- भंग होता है। इसके मानसिक लक्षण – मनमें बहुत आनन्द, कोई भी विषय मनमें पैदा होते ही तुरन्त कार्य में परिणत करना, किसी बीमारीके विषय में सोचते ही उसका उत्पन्न हो जाना । नीचे लिखी गई बीमारियोंमें यह लाभदायक है :

दर्द – प्रायः आ इंचसे लेकर १ इंच तक शरीरकी किसी एक छोटीसी जगह पर तेज दर्द, जो बहुत जल्दी-जल्दी पैदा होता है और छूट जाता है, बहुत थोड़ी देर तक ठहरता है— यहाँ तक कि कुछ सेकेण्डसे अधिक नहीं ठहरता। गठियाबातकी तरह — इसमें सन्धियोंमें भी खूब दर्द होता है; पर जिनके पेशाबमें ऑक्जेलेट रहता है उनकी बीमारियोंमें यह अधिक लाभ ता है। कमर का दर्द — कुल्हे और पीठ तक फैल जाता है। सेगी सोया रहे या – बैठा, चाहे जिस किसी अवस्था में रहे, उस अवस्थाको बदल देनेसे दर्द कुछ घटता है। वातका दर्द-शरीरकी बायीं ओर अधिक होता है। ऐसिड नाइट्रो म्यूर- ३-४ बूंद दिन में ३ बार-ऑक्जेल्युरिया, पेशाब धुआँकी तरह, यूरेथ्रामें जलन आदिकी दवा ।

स्नायुशूलका दर्द – मेरुदण्डके (spinal ) स्नायुशूलमें रोगी में अंग-प्रत्यंग हिलानेकी शक्ति लुप्त हो जाती है । अण्डकोषके स्पर्माटिक कार्ड ( शुक्रबाही नली ) में स्नायुशूलका दर्द, जिसमें जरा हिलते डोलते ही जान-सी निकलने लगती है। अण्डकोष भारी और ऐसा मालूम होता है मानो कुचल गया है।

हत्पिण्डकी बीमारी-कलेजेमें तेज धड़कनके साथ श्वासमें तकलीफ, हत्पिण्डके पास सभी समय मानो कुछ छटपट करता है, रातमें सोनेपर यह बहुत बढ़ जाता है। बायें फेफड़े और हत्पिण्डके पास खोंचा मारनेकी तरह बेतरह दर्द, इस दर्द से बचनेके लिए रोगी बड़े कष्टसे खींचकर साँस लेता है और फिर प्रश्वास जोरसे छोड़ देता है। एञ्जाइना पेक्टोरिस अर्थात् हत्शूल – इसका लक्षण ग्लोनोयन अध्याय में हत्पिण्डकी बीमारीमें देखिये।

अतिसार–पानीकी तरह पतले और बहुत ज्यादा परिमाणमें दस्त, रक्त और आँव-मिले पतले दस्त, कभी-कभी केवल आँव, उसके साथ ही दस्त आने के पहले और दस्तके समय नाभिकी जगहपर ऐंठनकी तरह तेज दर्द। इसमें दस्तके बाद कभी-कभी जी मिचलाता है, दस्त ज्यादा आनेपर पैरकी पोटलीमें ऐंठन होती है, रोग हैजाके-से लक्षणोंमें परिणत हो जाता है।

अम्लशूलका दर्द – नाभिके स्थानपर और नाभिके ऊपरी भागमें— पेटमें कॉलिक ( शूल ) का दर्द, जो भोजनके दो घण्टे बाद आरम्भ होता है; पेट फूल उठता है, पेटमें वायु इकठ्ठा होता है, यकृतके स्थानपर सूई गड़नेकी तरह दर्द होता है, तलपेटकी किसी एक छोटी-सी जगहपर जलन होती है; खट्टी, तीती या स्वादशून्य डकारें आती हैं, मुँहसे लार बहता है, पेटका दर्द छूते ही बढ़ता है ( कॉलोसिन्थ और ऐनाकार्डियम अध्याय देखिये ) । गलेसे पेट तक जलन, गति ऊपरकी ओर, जलन-बिहीन खट्टी व तीती कै ।

हैजा – आवाज बैठ जाना, कष्टसे साँस लेना, कलेजा धड़कना, हत्पिण्डमें दर्द ।

वृद्धि– रातके ३ बजे, बाईं ओर, जरा-सा छूनेपर, रोगके विषय में सोचनेसे ।

सम्बन्ध – आर्सेनिक, कॉलचिकम, आर्जेण्ट, पिक्रिक ऐसिडके सदृशं । क्रम – ६, ३० शक्ति ।

अनजानमें दस्त, पीले या सादे रंगका पेशाब, पेशाब में एलबुमेन ( अण्डलाल ) और फॉस्फेट निकले तो – ऐसिड फाँस फायदा करती है। ऐसी व्यवस्थामें सिनासे कोई लाभ नहीं होता।

वृद्धि– मानसिक विकार, वीर्य-नाश, बातचीत, बहुत ज्यादा रति इत्यादिसे ।

हास – हिलने-डोलनेपर, कभी-कभी दबावसे । –

सम्बन्ध – वात श्लेष्मा ज्वरमें- फॉस, पल्स, ऐसिड पिकिक, साइलि, ऐसिड म्यूर, और मोह तथा प्रलापमें- नाइट्रिक स्पिरि-डलसिसके साथ तुलना करनी चाहिए। भोजनके बाद मूर्च्छाका भाव होनेपर –नक्स ।

बादकी दवाएँ – चायना, फेरम, सेलिनि, लाइको, नक्स, सल्फ, पल्स, बेल, कॉस्टि, आर्स ।

क्रियानाशक – केम्फर, कॉफि, स्टेफि । क्रियाका स्थितिकाल – ४० दिन ।

क्रम – २x, २०० शक्ति |

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